कक्षा 10 सीबीएसई - हिंदी (अ)
प्रस्तुत पाठ 'माता का अँचल' प्रसिद्ध साहित्यकार शिवपूजन सहाय द्वारा लिखित एक आत्मकथात्मक अंश है, जो उनकी बाल-स्मृतियों पर आधारित है। यह पाठ लेखक के बचपन, उनके माता-पिता के साथ उनके संबंधों, विशेषकर माँ के प्यार, और गाँव के सहज-सरल ग्रामीण जीवन का सुंदर चित्रण करता है। इस पाठ में बचपन की निश्छलता, बाल-सुलभ क्रीड़ाओं और ग्रामीण परिवेश की एक जीवंत झाँकी प्रस्तुत की गई है।
पाठ का मुख्य पात्र लेखक स्वयं हैं, जिनका बचपन का नाम तारकेश्वरनाथ था, लेकिन उनके पिताजी उन्हें भोलानाथ कहकर पुकारते थे। पिताजी का भोलानाथ से गहरा स्नेह था। वे सुबह उठकर उन्हें अपने साथ नहलाते-धुलाते, पूजा-पाठ करवाते और अपने कंधे पर बिठाकर गंगा किनारे ले जाते थे। पिताजी राम नाम लिखी पर्चियों से आटे की गोलियाँ बनाते और गंगा में मछलियों को खिलाते थे। भोलानाथ भी उन्हें देखकर यही करते थे। पिताजी भोलानाथ को कुश्ती सिखाते, कभी हारते तो कभी जीतते और हमेशा भोलानाथ को जीत दिलाते थे।
भोलानाथ का अधिकांश समय पिताजी के साथ बीतता था, लेकिन भोजन के समय वे माँ के पास आ जाते थे। माँ उन्हें तरह-तरह के नाम लेकर ज़बरदस्ती खिलाती थीं और अक्सर उन्हें चिढ़ाती थीं कि वे पिताजी की तरह दुबले-पतले नहीं बनेंगे। माँ ही उनके माथे पर काजल का टीका लगाती थीं और चोटियाँ गूँथती थीं, जिससे वे 'कन्हैया' जैसे लगते थे।
पाठ में ग्रामीण बच्चों के खेलों का बड़ा ही मनोरम वर्णन है। बच्चे घरौदा बनाते, मिठाई की दुकान लगाते, बारात निकालते, खेती करते और तरह-तरह के स्वांग रचते थे। वे सब मिलकर खेलते थे और उनके खेल में पूरा गाँव शामिल हो जाता था। उनके खेल सामग्री भी बहुत साधारण होती थी, जैसे टूटे-फूटे खिलौने, मिट्टी, पत्तियां, ढेले आदि।
एक दिन बच्चे खेल रहे थे, तभी एक साँप आ गया। साँप को देखते ही बच्चे डर के मारे भागने लगे। भोलानाथ भी डरकर भागे और सीधे अपनी माँ के आँचल में जा छिपे। माँ ने उन्हें गले लगा लिया, उनके घावों पर हल्दी लगाई और उन्हें प्यार से सहलाया। इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि बच्चे चाहे कितना भी समय पिता के साथ बिताएँ, संकट के समय उन्हें माँ का अँचल ही सबसे सुरक्षित और प्रेमपूर्ण स्थान लगता है। यह पाठ माँ के ममता भरे अँचल की महत्ता को दर्शाता है और ग्रामीण जीवन की सादगी एवं बच्चों की निश्छलता को उजागर करता है।