कक्षा 10 सीबीएसई - हिंदी (अ)
प्रस्तुत रेखाचित्र 'बालगोबिन भगत' रामवृक्ष बेनीपुरी जी द्वारा रचित है। यह पाठ एक ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व का परिचय कराता है जो गृहस्थ होते हुए भी संत था। बालगोबिन भगत कबीर के पक्के अनुयायी थे और उनके सिद्धांतों को अपने जीवन में पूरी तरह उतार चुके थे। वे बाहरी आडंबरों से दूर, सादा जीवन जीते थे और अपने कर्मों से शुद्धता तथा समर्पण का परिचय देते थे।
लेखक बालगोबिन भगत के व्यक्तित्व, उनकी वेशभूषा, उनके मधुर संगीत और उनके जीवन के उन पहलुओं का वर्णन करते हैं, जो उन्हें एक सच्चा साधु बनाते हैं। वे न तो किसी से कुछ लेते थे और न ही किसी को सताते थे। उनका सारा जीवन कबीर के भक्ति मार्ग पर आधारित था। वे खेतों में काम करते हुए भी मस्ती में कबीर के पद गाते थे, जिससे पूरा वातावरण संगीतमय हो उठता था। उनकी प्रभातियाँ और संगीत लोगों को मंत्रमुग्ध कर देते थे।
कहानी में उनके पुत्र की मृत्यु का प्रसंग आता है, जहाँ वे शोक के बजाय आनंद के गीत गाते हैं, क्योंकि उनका मानना था कि आत्मा परमात्मा से मिल गई है। वे अपनी पुत्रवधू को दूसरा विवाह करने का आदेश देते हैं, जो उनकी सामाजिक प्रगतिशीलता और रूढ़ियों को तोड़ने की प्रवृत्ति को दर्शाता है। वे गंगा स्नान के लिए पैदल यात्रा करते थे और घर से खाकर जाते थे और वापस आकर ही कुछ खाते थे।
यह रेखाचित्र बताता है कि साधु बनने के लिए बाहरी वेशभूषा या संन्यास लेना जरूरी नहीं, बल्कि सच्ची साधुता आचरण, विचारों की शुद्धता और परोपकार में होती है। बालगोबिन भगत जैसे लोग समाज के लिए एक प्रेरणा हैं जो मानव मूल्यों और सामाजिक न्याय के प्रतीक हैं।