कक्षा 10 सीबीएसई - हिंदी (अ)
प्रस्तुत कहानी 'लखनवी अंदाज़' यशपाल जी द्वारा रचित है। यह एक व्यंग्यात्मक कहानी है जो सामंती वर्ग के दिखावटी जीवन-शैली और उनकी बनावटीपन पर कटाक्ष करती है। कहानी के माध्यम से लेखक यह भी सिद्ध करते हैं कि बिना पात्र, घटना और विचार के भी कहानी लिखी जा सकती है, हालाँकि यह एक व्यंग्य के रूप में ही है।
कहानी में लेखक एक ट्रेन के डिब्बे में यात्रा कर रहा होता है, जहाँ उसे एक नवाब साहब मिलते हैं। नवाब साहब ने पहले से ही खीरे खरीद रखे थे और उन्हें बड़े करीने से तौलिए पर सजाकर बैठे थे। लेखक को देखकर नवाब साहब ने खीरे खाने का प्रस्ताव रखा, जिसे लेखक ने विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया। इसके बाद नवाब साहब ने खीरे को धोया, काटा, उस पर नमक-मिर्च लगाया और फिर एक-एक फाँक को सूंघकर खिड़की से बाहर फेंकते गए। अंत में उन्होंने डकार ली, मानो खीरा खा लिया हो।
नवाब साहब का यह व्यवहार लेखक को बहुत अजीब लगा। उन्होंने महसूस किया कि यह केवल दिखावा और अपनी नवाबी शान बनाए रखने का एक तरीका था, जबकि वे शायद खीरा खाने के इच्छुक थे। नवाब साहब का यह व्यवहार उनकी सामंती सोच, बनावटीपन और आत्म-प्रदर्शन की प्रवृत्ति को दर्शाता है।
इस कहानी के माध्यम से यशपाल जी ने समाज के उस वर्ग पर व्यंग्य किया है जो वास्तविकता से दूर होकर केवल दिखावे में जीता है। यह कहानी यह भी दर्शाती है कि कुछ लोग अपनी झूठी शान बनाए रखने के लिए किस हद तक जा सकते हैं। लेखक ने इस घटना से यह निष्कर्ष निकाला कि जब बिना खीरा खाए केवल सूंघने से ही पेट भर सकता है और डकार आ सकती है, तो बिना विचार, घटना और पात्र के भी कहानी लिखी जा सकती है।