कक्षा 10 सीबीएसई - हिंदी (अ)
प्रस्तुत निबंध 'संस्कृति' प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु, लेखक और विचारक भदंत आनंद कौसल्यायन द्वारा लिखा गया है। यह पाठ 'संस्कृति' और 'सभ्यता' जैसे गूढ़ शब्दों के अर्थ को स्पष्ट करता है और उनके बीच के सूक्ष्म अंतर को समझाता है। लेखक यह स्थापित करने का प्रयास करते हैं कि सभ्यता क्या है और संस्कृति क्या है, और 'संस्कृत व्यक्ति' किसे कहा जा सकता है।
लेखक के अनुसार, 'संस्कृति' आगम (आविष्कार) करने की योग्यता और प्रेरणा है, जो मानव के भीतर निहित है। यह मानव द्वारा स्वयं की बुद्धि और विवेक से किया गया कोई नया आविष्कार या ज्ञान है, जिसके मूल में कल्याण की भावना निहित होती है। जैसे, आग का आविष्कार, सुई-धागे का आविष्कार, या गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत खोजना – ये सब संस्कृति के उदाहरण हैं क्योंकि इनके पीछे किसी 'संस्कृत व्यक्ति' की विशेष बुद्धि और क्षमता थी।
इसके विपरीत, 'सभ्यता' वह परिणाम है जो संस्कृति के विकास से उत्पन्न होता है। यह मानव समाज द्वारा अर्जित जीवन-शैली, रहन-सहन, खान-पान, विज्ञान और तकनीक का सामूहिक रूप है। उदाहरण के लिए, आग का आविष्कार संस्कृति था, लेकिन आग पर पका भोजन करना और उससे सर्दी भगाना सभ्यता का हिस्सा है। सुई-धागे का आविष्कार संस्कृति था, लेकिन उससे वस्त्र सिलना सभ्यता है।
लेखक यह भी स्पष्ट करते हैं कि भौतिक आविष्कार के साथ-साथ आध्यात्मिक और नैतिक आविष्कार भी संस्कृति का हिस्सा हैं। जैसे, महात्मा बुद्ध का त्याग और मानवता के प्रति करुणा, या कार्ल मार्क्स का समाज को शोषण से मुक्त करने का विचार – ये भी संस्कृति के उदाहरण हैं।
पाठ यह भी बताता है कि संस्कृति का अंतिम उद्देश्य मानव कल्याण है। वह संस्कृति जो मानव का अहित करती है या उसे विनाश की ओर ले जाती है, उसे संस्कृति नहीं कहा जा सकता। लेखक पाठ के अंत में स्पष्ट करते हैं कि मानव कल्याण की भावना ही सच्ची संस्कृति का मूल है, और यह हमारी सबसे बड़ी विरासत है जिसे हमें सुरक्षित रखना चाहिए।