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सूरदास - पद

कक्षा 10 सीबीएसई - हिंदी (अ)

पाठ का परिचय: सूरदास - पद

प्रस्तुत पाठ सूरदास के 'सूरसागर' के भ्रमरगीत से चार पद लिए गए हैं। ये पद उस समय के हैं जब श्रीकृष्ण मथुरा चले गए और उन्होंने गोपियों के लिए उद्धव के माध्यम से योग-संदेश भेजा था। उद्धव ने निर्गुण ब्रह्म और योग का उपदेश देकर गोपियों को विरह-व्यथा से मुक्त करने का प्रयास किया।

गोपियाँ कृष्ण के प्रेम में डूबी हुई थीं और उनके विरह में व्याकुल थीं। उद्धव का योग-संदेश उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं आया, क्योंकि वे सगुण कृष्ण की प्रेम-भक्ति में विश्वास रखती थीं। उसी समय एक भौंरा (भ्रमर) वहाँ आ पहुँचा, जिसे माध्यम बनाकर गोपियों ने उद्धव पर व्यंग्य बाण छोड़े। इसी कारण इसे 'भ्रमरगीत' कहा जाता है।

इन पदों में गोपियों का कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम, उनकी विरह-वेदना, वाक्पटुता (बोलने में निपुणता) और उद्धव पर व्यंग्य करने की कला का अद्भुत चित्रण है। गोपियाँ योग-संदेश को कड़वी ककड़ी और व्याधि (रोग) के समान बताती हैं, जो उनके लिए अनुपयोगी है। वे उद्धव को व्यंग्य करते हुए कहती हैं कि वे तो प्रेम के धागे से अछूते हैं, इसलिए प्रेम की पीड़ा को नहीं समझ सकते। इन पदों में प्रेम-मार्ग की श्रेष्ठता और निर्गुण ब्रह्म के योग-मार्ग की निरर्थकता को दर्शाया गया है।