कक्षा 10 सीबीएसई - हिंदी (अ)
यह अंश गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित महाकाव्य 'रामचरितमानस' के बालकांड से लिया गया है। यह प्रसंग तब का है जब सीता स्वयंवर में श्रीराम ने शिवजी का धनुष तोड़ दिया था। इस धनुष के भंग होने की खबर सुनकर भगवान परशुराम अत्यंत क्रोधित होकर वहाँ आते हैं। उन्हें लगता है कि उनके गुरु, भगवान शिव का धनुष किसी ने तोड़ा है, जो उनके लिए घोर अपमान था।
स्वयंवर सभा में परशुराम के क्रोध को देखकर लक्ष्मण उन पर व्यंग्य बाण छोड़ते हैं, जिससे परशुराम का क्रोध और भड़क उठता है। श्रीराम विनम्रतापूर्वक स्थिति को संभालने का प्रयास करते हैं, परंतु लक्ष्मण के व्यंग्यात्मक वचन और परशुराम का क्रोध इस 'संवाद' को एक रोचक और नाटकीय रूप देते हैं। इस संवाद में परशुराम का अहंकारी स्वभाव, लक्ष्मण का चंचल और साहसी व्यक्तित्व तथा श्रीराम की शांत और संयमित प्रकृति स्पष्ट रूप से सामने आती है।
यह पाठ छात्रों को वीर रस, रौद्र रस, तथा शांत रस का अनुभव कराता है और भाषा-शैली की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह संवाद केवल एक साहित्यिक कृति नहीं, बल्कि मानवीय स्वभाव के विभिन्न पहलुओं और मर्यादा, धैर्य तथा क्रोध के बीच के संतुलन को भी दर्शाता है।