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जयशंकर प्रसाद - आत्मकथ्य

कक्षा 10 सीबीएसई - हिंदी (अ)

पाठ का परिचय: जयशंकर प्रसाद - आत्मकथ्य

प्रस्तुत कविता 'आत्मकथ्य' जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित है। यह कविता 'हंस' पत्रिका के 'आत्मकथा विशेषांक' के लिए लिखी गई थी। प्रसाद के मित्रों ने उनसे अपनी आत्मकथा लिखने का अनुरोध किया था, लेकिन प्रसाद अपनी आत्मकथा लिखने से बचना चाहते थे। इसी असमंजस की स्थिति में उन्होंने यह कविता लिखी, जिसमें उन्होंने अपने जीवन के यथार्थ और अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है।

इस कविता में कवि ने अपने जीवन के दुखों, अभावों और असफलताओं का वर्णन किया है। वे मानते हैं कि उनका जीवन इतना महान नहीं कि उसकी आत्मकथा लिखी जाए। वे अपने जीवन को एक 'गागर रीति' (खाली घड़ा) के समान बताते हैं, जिसमें कोई विशेष उपलब्धि नहीं है। वे अपने जीवन की दुर्बलताओं और दूसरों द्वारा किए गए उपहासों को सार्वजनिक नहीं करना चाहते।

कविता में कवि ने अपनी व्यक्तिगत पीड़ा को सार्वभौमिक रूप दिया है। वे अपनी प्रेमिका के मधुर स्मृतियों को निजी रखना चाहते हैं और उन्हें सार्वजनिक करके उपहास का पात्र नहीं बनना चाहते। वे अपनी आत्मकथा को मौन रहने देना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके जीवन की कहानी सुनकर लोग उनका उपहास ही उड़ाएँगे। यह कविता प्रसाद के विनम्र, संवेदनशील और यथार्थवादी व्यक्तित्व को दर्शाती है।

यह कविता छायावादी शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें लाक्षणिकता, प्रतीकात्मकता और मार्मिकता का सुंदर प्रयोग हुआ है।