कक्षा 10 सीबीएसई - हिंदी (अ)
प्रस्तुत कविता 'संगतकार' मंगलेश डबराल द्वारा रचित है। यह कविता मुख्य गायक के साथ-साथ संगीत में संगत करने वाले संगतकार की भूमिका को रेखांकित करती है। यह उन सभी लोगों के महत्व को सामने लाती है, जो किसी भी क्षेत्र में मुख्य व्यक्ति या कलाकार की सफलता में पर्दे के पीछे रहकर योगदान देते हैं।
कवि बताता है कि जब मुख्य गायक का स्वर भारी और थकने लगता है या उसकी आवाज में कुछ हिचक आती है, तब संगतकार अपनी आवाज में उसके साथ खड़ा रहता है। वह अपनी आवाज को मुख्य गायक से ऊँचा नहीं उठने देता, भले ही उसकी अपनी प्रतिभा कितनी भी हो। वह हमेशा मुख्य गायक के स्वर को बल देता है, उसे भटकने से रोकता है और उसे सहारा देता है।
यह कविता केवल संगीत के क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर क्षेत्र में सहायक भूमिका निभाने वाले व्यक्तियों के महत्व पर प्रकाश डालती है। चाहे वह किसी बड़े नेता का सहायक हो, एक कारीगर का सहायक, या किसी बड़े वैज्ञानिक के दल का सदस्य हो - सभी संगतकार होते हैं। कवि संगतकार के त्याग, समर्पण और निःस्वार्थ भाव की सराहना करता है। उसकी मनुष्यता इसी में है कि वह मुख्य गायक की सफलता में अपना योगदान देता है और स्वयं को पीछे रखता है। यह कविता समाज में छुपी हुई, अनसुनी प्रतिभाओं और उनके योगदान को पहचान देने का प्रयास है।